वो एक चिड़िया जो मेरी छत पर रोज़ सुबह आती थी
अब नहीं आती
मेरी माँ के बिखेरे हुए चावल अब यूँही पड़े रहते है
ची ची चू चू की आवाज़ भी सन्नाटे के गले मिल गयी है
कोई खबर तो उसने दी नहीं
न ही कोई चिठ्ठी भेजी
पर वो तो चिड़िया है, ऐसा कैसे करती
मेरे आँगन के उपरवाले एक कोने में
आज भी उसके घोसले की दर-ओ-दीवार सलामत है
बस वहां कोई रहता नहीं
अब भी माँ को उसका इंतज़ार है
कहती है
उनके रहने से घर में हलचल सी रहती थी
जैसे कोई छोटा सा बच्चा उदास नहीं होने देता
होठो को मुस्कुराने के बहाने देता है
पर मुझे नहीं पता
वजह, कारण या जो भी हो
बस उनके न होने का एहसास
मुझे भी पता चलता है
मुझे भी पता चलता है
वो गौरैया वो छोटी सी चिड़िया
न जाने कितनी बड़ी जगह
हमारी ज़िन्दगी में कायम कर गयी
अब फिर न जाने कब दिखेगी