सोमवार, 19 जनवरी 2009

हवा...

चल पड़ी थी वो हवा,
मदहोश सी,
मदमस्त सी,
पेड़ों की डाल से झूलती,
फूलों के संग में खेलती,
घासों के लब को चूमती,
आगे बढ़ी,
बढ़ती गई,

अल्हड़ सी, वो बदमाश सी,
ऐसे ही एक खुमार में,
न जाने किस करार में,
छू लिया उसने तभी,
पानी के तन को प्यार से,
सिहरन हुयी,
दिखने लगी,
मुस्कान जब उठने लगी,
इस पार से, उस पार तक,
उठने लगी, ऐसी लहर,
की,
हवा भी,
संग संग चल पड़ी,
पर थम गई,
चंचल हवा
पानी ने जब आवाज़ दी,
पीछे मुड़ी, आकर खड़ी,
फ़िर पास उसके हो गई,
चंचल हवा शीतल हुयी,
थम गई, जब नम हुई,
फ़िर साथ,
फ़िर साथ उसके हो गई...

शुक्रवार, 16 जनवरी 2009

कभी


कभी आँखों में नींदे हैं,
कभी उनकी तलाशी है,
जागे हैं हम रातों में,
ये किस्से हैं कहानी है,
न जाने उम्र कितनी है,
न जाने कितनी साँसे हैं,
जी को देखा है, जी भर के,
जीने की तमन्ना है,
हर रास्ता हर मंजिल,
हर लम्हा तो अपना है,
बस एक सोच जो मेरी है,
बस एक सपना जो अपना है,
जाना है मुझे तो दूर,
मंजिल से आगे जाना है,
हुआ है ऐसा पहले भी,
गिरा हूँ मैं उठ उठ कर,
उठा हूँ मैं गिर गिर कर,
कदम मेरे थमे हर बार,
चले थम थम के फ़िर हर बार,
मंजिल को तलाशा है,
फ़िर ख़ुद को भी तराशा है।