मदहोश सी,
मदमस्त सी,
पेड़ों की डाल से झूलती,
फूलों के संग में खेलती,
घासों के लब को चूमती,
आगे बढ़ी,
बढ़ती गई,

अल्हड़ सी, वो बदमाश सी,
ऐसे ही एक खुमार में,
न जाने किस करार में,
छू लिया उसने तभी,
पानी के तन को प्यार से,
सिहरन हुयी,
दिखने लगी,
मुस्कान जब उठने लगी,
इस पार से, उस पार तक,
उठने लगी, ऐसी लहर,
की,
हवा भी,
संग संग चल पड़ी,
पर थम गई,
चंचल हवा
पानी ने जब आवाज़ दी,
पीछे मुड़ी, आकर खड़ी,
फ़िर पास उसके हो गई,
चंचल हवा शीतल हुयी,
थम गई, जब नम हुई,
फ़िर साथ,
फ़िर साथ उसके हो गई...