गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

.......चलूँ

सोचता हूँ वक़्त के कोहरे के उस पर चलूँ…
कभी मौके बेमौके बढ़ा के अपनी रफ़्तार चलूँ....
अभी चीरना भी है ऊंचे पर्वतों का सीना…
धार जल की भी चाहिए, चीर धरती का सीना....
बस कदम साध साध चलूँ …
इरादों के साथ चलूँ…
चलूँ कदम दर कदम चलूँ....

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