
मैंने कल तुम्हारी आँखे देखी थी,
न जाने कैसी पर एक कहानी कहती थी,दूर किसी पेड़ की डाल पर,
कल को अनजाना कहती थी,
दीवारों से आरपार खिड़की खोले,
किसी धूप की बात कहती थी,
जीते जीते कुछ साँसे लेते,
किसी धड़कन को धडकती थी,
झुकते उठते गिरते चलते,
थोडा सा मुस्काती थी,
मैं जी लूं, कुछ जी लूं,
एक इशारा करती थी,
अंधियारे में गुमसुम गुमसुम,
कोई खोया रस्ता तकती थी,
मिल जाते ही उन अंखियों से,
कुछ गुनगुनाया करती थी,
सचमुच ये खुली खुली सी आँखे,
कोई एक कहानी कहती थी....