शनिवार, 16 फ़रवरी 2008

मैं था....

नींद की थपकी कल मुझको जैसे मिली,
तेरी याद आकर सताने लगी !
तेरी खिड़की के नीचे खड़ा मैं रहा,
पलकें तेरी पर झुकी ही नहीं !
मैं तो तनहा रहा, मैं तो तनहा जिया,
मेरी अपनी ही धड़कन मुझे न मिली !
नींद से रूठकर उठ न जाओ कहीं,
मैं वहीं था खड़ा मैं हिला तक नही !
ज़िंदगी ने कहा जी ले कुछ पल ज़रा,
मैंने साँसे तो ली पर हुआ कुछ नही !
एक हँसी एक खुशी मुझको हर पल मिली,
पर ज़माना हँसे ये ज़रूरी नहीं !
वो सड़क जिससे गुज़रे थे हम तुम कभी,
वो सड़क अब तो शायद बची भी नहीं !
मैं था कतरा कहो एक टुकडा अगर,
चिंगारी ही था पर बुझा मैं नहीं

4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

tumaharee rachnashilta par mera bharosa aur majboot hota ja raha hai likhte raho aage badhte raho sabkee duwaon mai ek duwa hamaree bhee sweekaro
Badhai

Mukul Srivastava

बेनामी ने कहा…

SHANTANU AGAR AISI HI LIKHTE RAHE TO MUJHE AAPSE PYAR HO JAYEGA OR ME AAPSE PYAR NAHI KARNA CHAHTI
IN SHABDO KO DHULHAN KI TARH SAJAYA H AAPNE.OR KYA KAHE AAPKI TARRIF ME BASSSSSSSS KUCH NAHI H HAMARE PASS DUA K ALAWA

Shantanu ने कहा…

sunkar achcha laga ki aapko meri likhi poem achchi lagi aapko.....but can I know..who u R....???????
aapne apna parichaya bhi nahi likha....
waise thanx once again...

बेनामी ने कहा…

Sir, kya khoob likha hai aapne.
Waah aap to shayar ho gaye....