शनिवार, 16 फ़रवरी 2008

मेरी कविता...



मेरी कविता,

जिसके लफ्ज़, कुछ खो से गए,

एहसास कहीं दब से गए,

न जाने कितनी कब्रें खोदी,

जज्बात भी कहीं भटक गए,

वो जो दूर काली स्याही है

उसी से तो लिखा,

ज़िंदगी के स्याह पन्नों पर,

कुछ ऐसा,

जो उसी में कहीं खो गया,

ख़ुद आज भी खोजती है मेरी कविता,

अपने वजूद को,

उन के बीच जो जगमगा रहे हैं,

शांत शोर के साथ,

मेरी कविता गूंजने की कोशिश कर रही है,

कोई शब्द मिले तो इसका नाम लिख दूँ,

पर शब्द ही छुप गए,

अब मेरी कविता, सिर्फ़ मेरी कविता है,

बेनाम है,

शायद एक दिन,

इसे भी पहचान मिले,

इसी उम्मीद में आज भी,

कुछ साँसे बाकी हैं....

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

jo kho gaya hai use jald paoge or jo nahi hai use bhi.