गुरुवार, 10 जुलाई 2008

आँखे

आँखे कुछ सपने देखती है,
आँखे कुछ सपने बुनती है,
कभी बीते कल से नम होती हैं,
कभी आते कल को छूती है,
कभी हौले हौले चलते पल को,
निखर निखर सहलाती है,
पलकों को ऊपर उठती है,
ऊंचाई अम्बर की छूनी है,
नीचे जब ये देखती है,
धरती पाताल मिलाती है,
आशा की बूंदों से भीगे,
उम्मीदों को दौडाती है,
अपनी सोच से आगे चलते,
रंग दिमाग पर रचती है,

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

hmmmmm... kaafi inspiration/ motivation se bhari hai.
GUD!!!!!!!!!!!!!
Minaxi

chweetumohini ने कहा…

great yar kitni achche se apne bhavo bayan kar diya ............................waari javan andaz-e-bayan par