बुधवार, 14 जुलाई 2010

तुम 01

तुम मुडती हुयी उस सड़क सी हो,
किसी नए से रस्ते का अंदेशा बताती,
किसी नयी आहट का किस्सा बताती,
किसी पुरानी उलझन कि सुलझन बताती,
चौराहे को भी एक राह बनाती,
सपनो में से सच कि डगर बनाती,
न अगर न मगर,
सच को बस एक... सच बताती,
तुम्हारे आसपास एक मुस्कान सी फैली है,
तुम्हारे आसपास एक खुशबु सी बिखरी है,
तुम्हारे आसपास चांदनी भी है,
तुम्हारे आसपास रागिनी भी है,
मैं क्यूँ तुम्हारे आसपास रहता हूँ,
अपने मन में ये सवाल रखता हूँ,
जीता तो अपनी साँसों से हूँ,
पर उलझा तुम्हारे भीतर हूँ...

2 टिप्‍पणियां:

krati bajpai ने कहा…

apka blog zabardast hai.kuch koshish maine bhi ki hai, ek nazar us par bhi dalen. krati-fourthpillar.blogspot.com

hamarivani ने कहा…

अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....